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SWAMI VIVEKANAND SAID:



"TALK TO YOURSELF ATLEAST ONCE IN A DAY
OTHERWISE
YOU MAY MISS A MEETING WITH AN EXCELLENT PERSON IN THIS WORLD".........

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

gulal-film



aarambh hai prachand
bole mastakon ke jhund
aaj jang ki ghadi ki tum guhaar do

aarambh hai prachand
bole mastakon ke jhund
aaj jang ki ghadi ki tum guhaar do
aan baan shaan ya ki jaan ka ho daan
aaj ik dhanush ke baan pe utaar do

aarambh hai prachand
bole mastakon ke jhund
aaj jang ki ghadi ki tum guhaar do
aan baan shaan yaa ki jaan kaa ho daan
aaj ik dhanush ke baan pe utaar do
aarambh hai prachand

man kare so praan de
jo man kare so praan le
wahi to ek sarvshaktimaan hai
man kare so praan de
jo man kare so praan le
wahi to ek sarvashaktimaan hai












krishna ki pukaar hai
ye bhagwat ka saar hai
ki yudh hi to veer ka pramaan hai
kaurvon ki bheed ho ya
paandavon ka need ho
jo lad saka hai wohi to mahaan hai

jeet ki hawas nahi
kisi pe koi vash nahi
kya zindagi hai thokaron pe maar do
maut ant hai nahi
to maut se bhi kyun dare
ye jaake aasmaan mein dahaad do

aarambh hai prachand
bole mastakon ke jhund
aaj jang ki ghadi ki tum guhaar do
aan baan shaan ya ki jaan ka ho daan
aaj ik dhanush ke baan pe utaar do
aarambh hai prachand








ho daya ka bhaav
ya ki shaurya ka chunav
ya ki haar ka wo ghaav
tum ye soch lo
ho daya ka bhaav
ya ki shaurya ka chunav
ya ki haar ka wo ghaav
tum ye soch lo

ya ki poore bhaal par
jala rahe vijay ka
laal laal ye gulaal
tum ye soch lo

rang kesari ho ya
mridang kesari ho ya
ki kesari ho taal
tum ye soch lo

jis kavi ki kalpana mein
zindagi ho prem geet
us kavi ko aaj tum nakaar do
bheegati nason mein aaj
phoolati ragon mein aaj
aag ki lapat ka tum baghaar do

aarambh hai prachand
bole mastakon ke jhund
aaj jang ki ghadi ki tum guhaar do
aan baan shaan ya ki jaan ka ho daan
aaj ik dhanush ke baan pe utaar do
aarambh hai prachand
aarambh hai prachand
aarambh hai prachand


बुधवार, 30 नवंबर 2011

लबों से....gulzar


लबों से  चूम  लो , आँखों  से  थाम  लो  मुझको 
तुम्ही  से  जन्मू  तो  शायद  मुझे  पनाह  मिले 

दो  सौंधे  सौंधे  से  जिस्म  जिस  वक़्त  एक  मुठी  में  सो रहे  थे 
बता तो उस  वक़्त  मैं  कहा  था , बता  तो  उस  वक़्त  तू  कहा  थी 

मैं  आरजू  की  तपिश  में  पिघल   रही  थी  कही 
तुम्हारे  जिस्म  से  होकर  निकल  रही  थी  कही 
बड़े  हसीं  थे  जो  रह  में  गुनाह  मिले 
तुम्ही  से  जन्मू तो  शायद .........

तुम्हारी  लौ  को  पकड के  जलने  की  आरजू  में 
जब  अपने  ही  आप  से  लिपट  के  सुलग  रहा  था 
बता  तो उस  वक़्त  मैं  कहाँ था , बता  तो उस  वक़्त  तू  कहाँ  थी

तुम्हारी  आँखों  के  साहिल  से  दूर  दूर  कहीं 
मैं  ढूँढती थी  मिले  खुश्बुओ  का  नूर  कहीं 
वहीँ  रुकी  हूँ  जहाँ  से  तुम्हारी  राह मिले 
तुम्ही  से  जन्मू  तो  शायद ..


मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

ओ साथी रे दिन डूबे न -ओंकारा


o saathi re | Upload Music

ओ साथी रे दिन डूबे न 
आ चल दिन को रोके 
धुप के पीछे दौड़े  छाँव छूए ना 
ओ साथी रे

थका-थका सूरज जब नदी से होकर निकलेगा
हरी-हरी काई पे पाँव पडा तो फिसलेगा
तुम रोक के रखना मैं जाल गिराऊँ
तुम पीठ पे लेना मैं हाथ लगाऊँ
दिन डूबे ना
तेरी मेरी अट्टी-बट्टी
दांत से काटी कट्टी
रे जियो ना ओ पिहू रे
ओ पीहू रे ना जईओ न

कभी-कभी यूं करना मैं डांटू और तुम डरना
उबल पड़े आँखों से मीठे पानी का झरना
तेरे दोहरे बदन सिल जाऊँगी रे
जब  करवट लेना छिल जाऊँगी रे
ओ संग ले जाऊँगा
तेरी-मेरी अंगनी-मंगनी
अंग संग लागे संगनी
संग ले जाऊं ओ पिहू रे
ओ साथी रे दिन डूबे न





शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

क्या खोया क्या पाया जग में,...(Samvedna-Atal Bihari Vajpayee 2002)

[LyricsMasti] Lyrics of Kya Khoya Kya Paya (Samvedna-Atal Bihari Vajpayee 2002)

क्या खोया क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिकायत,
यधपि छला गया पग-पग में,
एक दृष्टि बीती पर डालें,
यादों की पोटली टटोलें,
जन्म मरण का अविरत फेरा,
जीवन बंजारों का अविरत डेरा,
आज यहाँ कल वहाँ कूच है,
कौन जानता किधर सवेरा,
अंधियारा आकाश असीमित,
प्राणों के पखों को तौलें,
अपने ही मन से कुछ बोलें,





गुरुवार, 18 अगस्त 2011

रविवार, 14 अगस्त 2011

मेरे गोपन निर्जन ह्रदय में               মোর হৃদয়ের গোপন বিজন ঘরে
अकेले हो तुम नीरव शयन में-             একেলা রয়েছ নীরব শয়ন প'রে-
प्रियतम हे, जागो जागो जागो ||            প্রিয়তম হে, জাগো জাগো জাগো ।।
रुद्ध द्वार के बाहर खडी  हूँ मैं              রুদ্ধ দ্বারের বাহিরে দাঁড়ায়ে আমি
कबतक काटेंगे ऐसे दिन प्रिये-           আর কতকাল এমনি কাটিবে স্বামী-
प्रियतम हे, जागो जागो जागो ||              প্রিয়তম হে, জাগো জাগো জাগো ।।
रजनी-तारका गगन में है छाया,            রজনীর তারা উঠেছে গগন ছেয়ে,
मेरे वातायन पर मैंने सबकी दृष्टि है पाया     আছে সবে মোর বাতায়ন-পানে চেয়ে-
प्रियतम हे, जागो जागो जागो ||             প্রিয়তম হে, জাগো জাগো জাগো ।।
मेरे जीवन को  संगीत से भर दो            জীবনে আমার সঙ্গীত দাও আনি,
वीणा-वाणी को तुम नीरव न रख दो      নীরব রেখো না তোমার বীণার বাণী-
प्रियतम हे, जागो जागो जागो ||            প্রিয়তম হে, জাগো জাগো জাগো ।।
मिलायेंगे ये नयन तुम्हारे नयनो के साथ,মিলাবো নয়ন তব নয়নের সাথে,
दूँगी तुम्हारे हाथों में ये हाथ-             মিলাবো এ হাত তব দক্ষিণহাতে-
प्रियतम हे, जागो जागो जागो ||             প্রিয়তম হে, জাগো জাগো জাগো ।।
हृदयपात्र होगा अमृत से पूर्ण ,       হৃদয়পাত্র সুধায় পূ্র্ণ হবে,
गहरे प्रकाश-ध्वनि से तिमिर थर्थरायेगा তিমির কাঁপিবে গভীর আলোর      
प्रियतम हे, जागो जागो जागो ||                                               রবে-
                                                              প্রিয়তম হে, জাগো জাগো জাগো ।।




शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

भाई-बहन के आपसी सद्भाव को बढ़ाती रक्षाबंधन के पर्व पर प्रस्तुत है भाव पूर्ण गीत


अब  के  बरस भेज  भइया  को  बाबुल 
सावन  ने  लीजो  बुलाय  रे 
लौटेगी  जब  मेरे  बचपन  की  सखियाँ 
देजो  सदेशा  भिजाय रे
अब के बरस भेज भइया को बाबुल ...

अम्बुवा  तले फिर  से  झूले  पड़ेगे 
रिमझिम  पड़ेगी  फुहारे 
लौटेगी फिर तेरे  आँगन  में  बाबुल
सावन की ठंडी  बहार रे
छलके  नयन  मोरा  कसके  रे जियरा 
बचपन की जब याद  आए  रे
अब के बरस भेज भइया को बाबुल ...

बैरन  जवानी  ने छीने  खिलौने 
और  मेरी  गुडिया  चुराई 
बाबुल की मै तेरे नाजो  की पाली 
फिर क्यों  हुई  मै पराई 
बीते  रे जग  कोई  चिठिया  न  पाती 
न कोई नैहर  से आये , रे
अब के बरस भेज भइया को बाबुल ...

पेश है एक और भावपूर्ण गीत

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

उन पुराने दिनों.......ravindra sangeet


उन पुराने  दिनों  की बातें हाय कैसे भूल पाओगे                              পুরানো সেই দিনের কথা ভুলবি কি রে হায়।
वो आँखों में झांकना ,दिल की बातें करना वो  कैसे भूल पाऊँ           ও সেই চোখে দেখা, প্রাণের কথা, সে কি ভোলা যায়।
आओ और एकबार आओ हे सखा ह्रदय में समा जाओ                 আয় আর একটিবার আয় রে সখা, প্রাণের মাঝে আয়।
हम सुख-दुःख की बातें करें जी भर कर आओ                              মোরা সুখের দুখের কথা কব, প্রাণ জুড়াবে তায়।
वो  हमारा  भोर बेला में फूल चुनना , झूला झूलना                         মোরা ভোরের বেলা ফুল তুলেছি, দুলেছি দোলায়--
बकुल के पेड़ के नीचे बंसी बजाकर  गाना सुनाना                              বাজিয়ে বাঁশি গান গেয়েছি বকুলের তলায়।
फिर कुछ दिनों के लिए हुए  अलग गए कौन कहाँ                            হায় মাঝে হল ছাড়াছাড়ি, গেলেম কে কোথায়--
अब फिर से हम मिले हैं सखा आओ प्राण में समा जाओ                     আবার দেখা যদি হল, সখা, প্রাণের মাঝে আয়॥


अरुणकांत जोगी भिखारी -nazrul giti


अरुणकांत जोगी भिखारी तुम हो कौन                           অরুণকান্তি কেগো যোগী ভিখারী।
नीरव हास्य लिए तुम द्वार पर आये                              নীরবে হেসে দাঁড়াইলে এসে
प्रखर तेज तव न जाए निहारी                                         প্রখর তেজ তব নেহারিতে নারি।

रास-विलासिनी मई आहिरिणी                                       রাস-বিলাসিনী আমি আহিরিণী
तव श्यामल-किशोर-रूप ही पहचानूं                                শ্যামল-কিশোর-রূপ শুধু চিনি
आज अम्बर में ये कैसा ज्योति पुंज है पसरा                    অম্বরে হেরি আজ একি জ্যোতি-পুঞ্জ?
हे गिरिजापति गिरिधारी तुम हो कहाँ                               হে গিরিজাপতি! কোথা গিরিধারী।

अम्बर-अम्बर महिमा तव छाया                                   সম্বর সম্বর মহিমা তব             
हे!ब्रजेश भैरव ! मैं ब्रजबाला                                           হে ব্রজেশ ভৈরব! আমি ব্রজবালা,
हे! शिव सुन्दर व्याघ्र-चर्म धारी                                     হে শিব সুন্দর! বাঘছাল পরিহর-
धर नटवर वेश पहनो नीपमाला                                    ধর নটবর বেশ পর নীপমালা।

नव मेघ चन्दन से छुपा लो अंग ज्योति                      নব-মেঘ-চন্দনে ঢাকি’ অঙ্গগজ্যোতি
प्रिय बन दर्शन दो हे! त्रिभुवन पति                              প্রিয় হ’য়ে দেখা দাও ত্রিভুবন-পতি,
 मैं नहीं हूँ पार्वती , मैं श्रीमती                                        পার্ব্বতী নহি আমি, আমি শ্রীমতী,
विष तज कर बनो बांसुरी धारी                                   বিষাণ ফেলিয়া হও বাঁশরী-ধারী।।

     अहीर भैरव /त्रिताल                                               আহীর ভৈরব / ত্রিতাল


मंगलवार, 2 अगस्त 2011

तुम्हे नहीं मिला मेरा परिचय - ravindra sangeet

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तुम्हे नहीं मिला मेरा परिचय 

जानो जिसे तुम वो नहीं हूँ मैं  

जो माला पहनाया तुमने ,सूखे वो पल पल में 

प्रकाश भी सहमा जाय ,

वायु-स्पर्श भी न सहा जाय ,


आओ-आओ विषाद जलाओ शिखा 


मेरे मस्तक में लगाओ अग्निमयी टीका 


मरण आये चुपके से परम प्रकाश रूप में 


सभी आवरण से हो जाऊं  मुक्त 


और सभी पराजय का हो जाय अंत ||



তুমি মোর পাও নাই পরিচয়।
তুমি যারে জান সে যে কেহ নয়, কেহ নয়॥
মালা দাও তারি গলে, শুকায় তা পলে পলে,
আলো তার ভয়ে ভয়ে রয়--
বায়ুপরশন নাহি সয়॥

এসো এসো দুঃখ, জ্বালো শিখা,

দাও ভালে অগ্নিময়ী টিকা।

মরণ আসুক চুপে পরমপ্রকাশরূপে,

সব আবরণ হোক লয়--

ঘুচুক সকল পরাজয়॥

रविवार, 31 जुलाई 2011

आज भी रोये वन में -nazrul giti




আজো কাঁদে কাননে কোয়েলিয়া।
চম্পা কুঞ্জে আজি গুঞ্জে ভ্রমরা-কুহরিছে পাপিয়া।।
প্রেম-কুসুম শুকাইয়া গেল হায়!
প্রাণ-প্রদীপ মোর হের গো নিভিয়া যায়,
বিরহী এসে ফিরিয়া।।
তোমারি পথ চাহি হে প্রিয় নিশিদিন
মালার ফুল মোর ধুলায় হ’ল মলিন
জনম গেল ঝুরিয়া।।



হাস্বৗর-ত্রিতাল


आज  भी रोये वन में कोयलिया 
चंपा कुञ्ज में आज गुंजन करे भ्रमरा -कुहके पापिया 
प्रेम-कुञ्ज भी सूखा हाय!
प्राण -प्रदीप मेरे निहारो हाय!
कहीं बुझ न जाय विरही आओ लौट कर हाय!
तुम्हारा पथ निहारूं हे प्रिय निशिदिन 
माला का फूल हुआ धुल में मलिन 
जनम मेरा विफल हुआ 

राग-हमीर 
ताल-त्रिताल 

प्यार है मुझे-ravindra sangeet



ভালোবাসি, ভালোবাসি--
এই সুরে কাছে দূরে জলে স্থলে বাজায় বাঁশি॥
আকাশে কার বুকের মাঝে ব্যথা বাজে,
দিগন্তে কার কালো আঁখি আঁখির জলে যায় ভাসি॥
সেই সুরে সাগরকূলে বাঁধন খুলে
অতল রোদন উঠে দুলে।
সেই সুরে বাজে মনে অকারণে
ভুলে-যাওয়া গানের বাণী, ভোলা দিনের কাঁদন-হাসি॥





प्यार है मुझे 
दूर या पास जल-स्थल इन्हीं  स्वरों में  बजे  बंशी 

वो आकाश में किसके ह्रदय में व्यथा बजे 
दूर दिगंत में किसके काली आँखों से आंसूं बहे ||

उस सुर-सागर के किनारों का बंधन तोड़कर 
अतल  रूदन बाहर आया झूमकर 

उन सुरों में अकारण ही मेरे मन में बजे 
भूला हुआ संगीत के स्वर ,और भूले हुए क्रंदन -हँसी 

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

शाओनो राते जोदी-नजरुल गीति


shaono rate jodi, sarone ase more
bahire jhoro bohe, noyne bari jhore
shaono rate jodi
sarone ase more, bahire jhoro bohe
noyne bari jhore
shaono rate jodi
bhulio sriti momo, nishitho swapano somo
bhulio sriti momo, nishitho swapano somo
ancholer gantha mala phelio patho pore
bahire jhoro bohe noyne bari jhore
shaono rate jodi
jhuribe pubali bay, gohono duro bone
jhuribe pubali bay, gohono duro bone
rohibe chahi tumi ekala batayane
ghirihi kuhu keka gahibe niposakhe,
jomuna nadi pare shunibe ke jeno dake
birohi kuhu keka gahibe niposakhe,
jomuna nadi pare shunibe ke jeno dake


bijoli dipo shikha, khujibe tomay priya,
duhate dheko annkhi, jodi go jole bhre
bahire jhoro bohe, noyne bari jhore
shaono rate jodi, sarone ase more
bahire jhoro bohe, noyne bari jhore
shaono rate jodi


सावन के रात में गर  स्मरण तुम आये 
बाहर तूफान बहे नयनों से बारि झरे 

भूल जाना स्मृति मम
निशीथ स्वपन सम 
आँचल में गुंथा माला 
फेंक देना पथ पर 
बाहर तूफान बहे नयनों से बारि झरे 


झरेंगे पुर्वायु, गहन दूर वन   में 
अकेले देखते रह जाओगे तुम 
इस वातायन में 


विरही  कुहु केका गायेंगे नीप शाखाओं पर 
यमुना नदी के पार सुनोगे कोई पुकारे 


बिजली दीपशिखा ढूँढेंगे तुम्हे पिया 
दोनों हाथों को ढकलेना आँखों को ज़रा 
 गर आंसूं से  नयन भरे 
बाहर तूफान बहे नयनों से बारि झरे 







गुरुवार, 28 जुलाई 2011

रविन्द्र संगीत - दाडिये आछो



দাঁড়িয়ে আছ তুমি আমার গানের ও পারে–
আমার সুরগুলি পায় চরণ, আমি পাই নে তোমারে ।
বাতাস বহে মরি মরি, আর বেঁধে রেখো না তরী–
এসো এসো পার হয়ে মোর হৃদয়মাঝারে.......

তোমার সাথে  গানের  খেলা  দুরের  খেলা  যে ,
বেদনাতে  বাঁশি  বজায়  সকল  বেলা  যে .
কবে   নিয়ে  আমার  বাঁশি  বাজাবে  গো  আপনি  আশি ;
আনন্দময়  নিরব  রাতের  নিবিড় আঁধারে .
দাঁড়িয়ে আছ তুমি আমার গানের ও পারে–

আমার  সুরগুলি  পায়  চরণ , আমি  পাই  নে  তোমারে . 

দাঁড়িয়ে আছ তুমি আমার গানের ও পারে–
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx


मेरे संगीत के उस पार आप है खड़े 
मेरे सुरों को मिला है आपका चरण स्पर्श पर 
आप मुझको नहीं मिले 

तुम्हारे साथ गीतों से क्रीडा 
जो है दूर का खेल
वेदना से भरे मन से 
बंशी बजे सुबह-शाम रे 

कब मेरी बंशी को लेकर 
आपही छेड़ेंगे आकर 
वो नीरव रात के निबिड़ अँधेरा भी 
आनंदमय होगा रे 




बुधवार, 27 जुलाई 2011

आमार मुक्ति आलोय आलोय


আমার মুক্তি আলোয় আলোয় এই আকাশে,
আমার মুক্তি ধুলায় ধুলায় ঘাসে ঘাসে॥
দেহ মনের সুদূর পারে হারিয়ে ফেলি আপনারে,
গানের সুরে আমার মুক্তি উর্ধ্বে ভাসে॥
আমার মুক্তি সর্বজনের মনের মাঝে,
দুঃখ বিপদ তুচ্ছ করা কঠিন কাজে।
বিশ্বধাতার যজ্ঞশালা, আত্মহোমের বহ্নি জ্বালা
জীবন যেন দিই আহুতি মুক্তি আশে॥



आमार मुक्ति आलोय आलोय  एई आकाशे

आमार मुक्ति धूलाय  
धूलाय घासे घासे 


देह मोनेर सुदूर पारे  हारिये फेली आपोनारे 
गानेर सूरे आमार मुक्ति उर्ध्वे भासे 

आमार मुक्ति सर्ब्बोजोनेर मोनेर माझे 
दू:ख बिपद तुच्छ कोरा कोठीन काजे 

बिश्वधातार यज्ञशाला,आत्म होमर बह्निजाला 
जीबों जानो दी आहुति मुक्ति आशे 


उपरोक्त गाने का आशय को अक्षुण रखते हुए अनुवाद करने की कोशिश करती हूँ :

आलोक से भरा इस आकाश में ही मेरा मोक्ष है छिपा 
इन धुल कणों में ,इन तृणों में मेरा मुक्ति है छिपा 

देह मन के  सुदूर छोर है जहां 
मन मेरा खो जाता है वहां 
इन गीतों के सुरों के उर्ध्व में मेरी मुक्ति है छिपा 

मेरी मुक्ति सर्वजनो के ह्रदय में है छिपा 
दू:ख विपद को तुच्छ करता हुआ कठिन कामो में है बसा 

विश्व विधाता के यज्ञशाला में 
आत्मा होम के अग्निशाला में 
मै अपने जीवन की आहुति दे दूं 
मुझे मुक्ति मिल जाए  







मंगलवार, 19 जुलाई 2011

ऐतबार -आशा भूपेंद्र

भूपेंद्र 
आवाज़ दी है आज एक नज़र ने या है ये दिल को गुमां
दोहरा रही है सारी फिजायें भूली हुई दास्ताँ 
आशा 
लौट आई है फिर रूठी बहारें कितना हसीं है समां 
दुनिया से कह दो न हमको पुकारे कि हम खो गए है यहाँ 
भूपेंद्र
जीवन में कितनी वीरानियाँ थी छाई थी कैसी उदासी 
सुनकत किसी के कदमो कि आह्ट हलचल हुई है ज़रा सी 
सागर में जैसे लहरें उठी है टूटो है खामोशियाँ 
दोहरा रही है सारी फिजायें भूली हुई दास्ताँ 
आशा 
तूफां में खोई  कश्ती को आखिर मिल ही गया है किनारा 
हम छोड़ आये ख़्वाबों कि दुनिया दिल ने तेरे जब पुकारा 
कब से कड़ी थी बाहें पसारे  इस दिल कि तन्हाइयां 
दुनिया से कह दो न हमको पुकारे कि हम खो गए है यहाँ 
भूपेंद्र
अब याद आया कितना अधूरा अब तक था दिल का फ़साना 
आशा 
यूं पास आके दिल में समाके दामन न हमसे छुडाना 
जिन रास्तों पर तेरे कदम हो  मंजिल है मेरी वहाँ 
दुनिया से कह दो न हमको पुकारे कि हम खो गए है यहाँ 
लौट आई है फिर रूठी बहारें कितना हसीं है समां 
दुनिया से कह दो न हमको पुकारे कि हम खो गए है यहाँ  

सोमवार, 18 जुलाई 2011

शाम से आंख में......


 शाम से आंख में नमी सी है,
 आज फिर आपकी कमी सी है.

 दफन कर दो हमें तो साँस आये,
 देर से सांस कुछ थमी सी है ;

कौन पथरा गया है आँखों में ?
बर्फ पलकों में तो जमी सी है

 शाम से आंख में नमी सी है ,
 आज फिर आपकी कमी सी है
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शनिवार, 16 जुलाई 2011

जाने दो मुझे-गुलज़ार


जाने दो मुझे जाने दो
जाने दो मुझे जाने दो
रंजिशें या गिले, वफ़ा के सिले
जो गये जाने दो
जाने दो मुझे जाने दो
जाने दो मुझे जाने दो

थोड़ी ख़लिश होगी, थोड़ा सा ग़म होगा 
तन्हाई तो होगी, एह्सास कम होगा
गहरी ख़राशों की गहरी निशानियाँ हैं
चेहरे के नीचे कितनी सारी कहानियाँ हैं
माजी के सिलसिले, जा चुके जाने दो 
ना आ आ..

उम्मीद-ओ-शौक़ सारे लौटा रही हूँ मैं 
रुसवाई थोड़ी सी ले जा रही हूँ मैं
बासी दिलासों की शब तो गुज़ार आये
आँखों से गर्द सारी रोके उतार आये
आँखों के बुल्बुले बह गये, जाने दो 
ना आ आ..

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

दिल पडोसी है-गुलज़ार

रिश्ते बनते है बड़े धीरे से 
    बनने भी दे 
कच्चे लम्हें को ज़रा शाख़ पे 
    पकने दे दे 

एक चिंगारी का उड़ना था कि
    पर काट दिए 
ओ आंच आई तो ज़रा आग को 
    जलने दे दे 
कच्चे लम्हें को ज़रा शाख़ पे 
    पकने दे दे 

एक ही लम्हे पे इक साथ 
    गिरे थे दोनों 
ओ खुद संभल के या ज़रा मुझको 
    सँभालने दे दे 
कच्चे लम्हें को ज़रा शाख़ पे 
    पकने दे दे 

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

इश्किया ....गुलज़ार /रेखा भरद्वाज


बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..
बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..

रातों  से  हौले  हौले …
खोली  है  किनारे
अखियों  ने  तागा  तागा …
भोर  उतारी
खारी अखियों  से,
धुआं  जाए  न
बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..



पलकों  पे  सपनों  की, अग्नि  उठाये
हमने  तो अखियों  के , आलने  जलाये 
 दर्द  ने  कभी  लोरियां  सुने  तो
दर्द  ने  कभी  नींद  से  जगाया  रे
बैरी  अखियों  से  न  जाए  धुआं  जाए  न 
बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..

जलते  चरागों  में  अब  नींद  न  आये
फूंकों  से  हमने ..सभी तारे   बुझाये 
 जाने  क्या  खोली, रात की  पिटारी  से
खोला  तो  कोई , भोर  की  किनारी  रे
सूजी  अखियों  से , न  जाए  धुआं  जाए  न 
बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..


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