यारा लगा मन फकीरी में
न डर खोने का
न खुशी कुछ पाने का
ये जहां है अपना
बीते न दिन गरीबी में
यारा लगा मन फकीरी में
जब से लागी लगन उस रब से
मन बैरागी सा हो गया
पथ-पथ घूमूं ढूंडू पिया को
ये फकीरा काफ़िर बन गया
मन फकीरा ये जान न पाए
आखिर उसे जाना है कहाँ
रब दे वास्ते ढूंडन लागी
रास्ता-रास्ता गलियाँ-गलियाँ
क्या करूँ कुछ समझ न आये
उस रब दे मिलने के वास्ते
ढूँढ लिया सब ठौर-ठिकाने
गली,कूचे और रास्ते
जाने कब जुड़ेगा नाता
और ये फकीर तर जावेगा
सूख गयी आँखे ये देखन वास्ते
रब ये मिलन कब करवावेगा
आध्यात्म की ओर अग्रसर करने वाली अच्छी रचना ..
जवाब देंहटाएंकविता हो या गीत ...आप अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हैं ! हार्दिक शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंआध्यात्म की ओर अग्रसर करने वाली अच्छी रचना|धन्यवाद|
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