अरुणकांत जोगी भिखारी तुम हो कौन অরুণকান্তি কেগো যোগী ভিখারী।
नीरव हास्य लिए तुम द्वार पर आये নীরবে হেসে দাঁড়াইলে এসে
प्रखर तेज तव न जाए निहारी প্রখর তেজ তব নেহারিতে নারি।
रास-विलासिनी मई आहिरिणी রাস-বিলাসিনী আমি আহিরিণী
तव श्यामल-किशोर-रूप ही पहचानूं শ্যামল-কিশোর-রূপ শুধু চিনি
आज अम्बर में ये कैसा ज्योति पुंज है पसरा অম্বরে হেরি আজ একি জ্যোতি-পুঞ্জ?
हे गिरिजापति गिरिधारी तुम हो कहाँ হে গিরিজাপতি! কোথা গিরিধারী।
अम्बर-अम्बर महिमा तव छाया সম্বর সম্বর মহিমা তব
हे!ब्रजेश भैरव ! मैं ब्रजबाला হে ব্রজেশ ভৈরব! আমি ব্রজবালা,
हे! शिव सुन्दर व्याघ्र-चर्म धारी হে শিব সুন্দর! বাঘছাল পরিহর-
धर नटवर वेश पहनो नीपमाला ধর নটবর বেশ পর নীপমালা।
नव मेघ चन्दन से छुपा लो अंग ज्योति নব-মেঘ-চন্দনে ঢাকি’ অঙ্গগজ্যোতি
प्रिय बन दर्शन दो हे! त्रिभुवन पति প্রিয় হ’য়ে দেখা দাও ত্রিভুবন-পতি,
प्रिय बन दर्शन दो हे! त्रिभुवन पति প্রিয় হ’য়ে দেখা দাও ত্রিভুবন-পতি,
मैं नहीं हूँ पार्वती , मैं श्रीमती পার্ব্বতী নহি আমি, আমি শ্রীমতী,
विष तज कर बनो बांसुरी धारी বিষাণ ফেলিয়া হও বাঁশরী-ধারী।।
अहीर भैरव /त्रिताल আহীর ভৈরব / ত্রিতাল
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