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मंगलवार, 12 जुलाई 2011

इश्किया ....गुलज़ार /रेखा भरद्वाज


बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..
बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..

रातों  से  हौले  हौले …
खोली  है  किनारे
अखियों  ने  तागा  तागा …
भोर  उतारी
खारी अखियों  से,
धुआं  जाए  न
बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..



पलकों  पे  सपनों  की, अग्नि  उठाये
हमने  तो अखियों  के , आलने  जलाये 
 दर्द  ने  कभी  लोरियां  सुने  तो
दर्द  ने  कभी  नींद  से  जगाया  रे
बैरी  अखियों  से  न  जाए  धुआं  जाए  न 
बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..

जलते  चरागों  में  अब  नींद  न  आये
फूंकों  से  हमने ..सभी तारे   बुझाये 
 जाने  क्या  खोली, रात की  पिटारी  से
खोला  तो  कोई , भोर  की  किनारी  रे
सूजी  अखियों  से , न  जाए  धुआं  जाए  न 
बड़ी  धीरे  जली … रैना
धुआं  धुआं  नैना  आ ..


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