धूलाय घासे घासे
देह मोनेर सुदूर पारे हारिये फेली आपोनारे
गानेर सूरे आमार मुक्ति उर्ध्वे भासे
आमार मुक्ति सर्ब्बोजोनेर मोनेर माझे
दू:ख बिपद तुच्छ कोरा कोठीन काजे
बिश्वधातार यज्ञशाला,आत्म होमर बह्निजाला
जीबों जानो दी आहुति मुक्ति आशे
उपरोक्त गाने का आशय को अक्षुण रखते हुए अनुवाद करने की कोशिश करती हूँ :
आलोक से भरा इस आकाश में ही मेरा मोक्ष है छिपा
इन धुल कणों में ,इन तृणों में मेरा मुक्ति है छिपा
देह मन के सुदूर छोर है जहां
मन मेरा खो जाता है वहां
इन गीतों के सुरों के उर्ध्व में मेरी मुक्ति है छिपा
मेरी मुक्ति सर्वजनो के ह्रदय में है छिपा
दू:ख विपद को तुच्छ करता हुआ कठिन कामो में है बसा
विश्व विधाता के यज्ञशाला में
आत्मा होम के अग्निशाला में
मै अपने जीवन की आहुति दे दूं
मुझे मुक्ति मिल जाए
मुझे आपका यह गीत बहुत अच्छा लगा । मुझे बांग्ला भाषा भी बहुत अच्छी लगती है । हमारे पीर मौलाना क़ारी साहब बंगाल के 24 परगना ज़िले के ही हैं। हमारी एक चाची भी बहुत अच्छी बांग्ला जानती हैं । मैंने बांग्ला भाषियों को हमदर्द पाया है ।
जवाब देंहटाएंमैं आपका यह गीत मुशायरे में लगाना चाहता हूँ ।
लोगों की आसानी के लिए आप इसका अनुवाद भी कर दीजिए ।
आभार तोमार
सही है न ?
मुझे आपका यह गीत बहुत अच्छा लगा । मुझे बांग्ला भाषा भी बहुत अच्छी लगती है । हमारे पीर मौलाना क़ारी साहब बंगाल के 24 परगना ज़िले के ही हैं। हमारी एक चाची भी बहुत अच्छी बांग्ला जानती हैं । मैंने बांग्ला भाषियों को हमदर्द पाया है ।
जवाब देंहटाएंमैं आपका यह गीत मुशायरे में लगाना चाहता हूँ ।
लोगों की आसानी के लिए आप इसका अनुवाद भी कर दीजिए ।
आभार तोमार
सही है न ?
अनुवाद होने के बाद अब मंशा पूरी तरह समझ पा रहा हूँ .
जवाब देंहटाएंइस वीडियो का लिंक भी दीजिये ताकि इसे साथ लगाया जा सके . इस गाने का तरन्नुम दिल में क्यों उतरता जाता है ?
शुक्रिया .