विचारों का बादल उमड़ते घुमड़ते आ ही जाते है
शब्द जाल के उधेड़ बुन में जकड़ ही जाते है
व्याकरण की चाशनी में डूब ही जाती है
वर्ण-छंद के लय ताल में पिरो दी जाती है
लेखनी की झुरमुटों से जब निकलता है
विचार मात्र विचार ही नहीं वांग्मय बन जाता है
कृति ये ज्योत बनकर जगमगाता है
अपने प्रकाश से प्रकाशित कर सब पर छा जाता है
तिस पर उसे गर स्वर में बांधा तो गीत बनता है
सुर का जादू गर चले तो समां बंध जाता है
विचारों को बढ़ने के दो पग मिल जाते है
(इस तरह )सम्पूर्णता को प्राप्त कर वो झिलमिलाते है
लेखनी की झुरमुटों से जब निकलता है
जवाब देंहटाएंविचार मात्र विचार ही नहीं वांग्मय बन जाता है
यह विचार भी विचारणीय है.
:)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंअपुन भी आस लगा के बैठे हैं कि कभी मेरी भी किसी कहानी पर कोई सीरियल बने तो वो सम्पूर्णता को प्राप्त करे