फ़ॉलोअर
sig
SWAMI VIVEKANAND SAID:
"TALK TO YOURSELF ATLEAST ONCE IN A DAY
OTHERWISE
YOU MAY MISS A MEETING WITH AN EXCELLENT PERSON IN THIS WORLD".........
सोमवार, 30 अगस्त 2010
'ध्रुवतारा'
तारा टूटा है दिल तो नही
चहरे पर छाई ये उदासी क्यों
इनकी तो है बरात अपनी
तुम पर छाई ये विरानी क्यों
न चमक अपनी इन तारों की
न रोशनी की राह दिखा सके
दूर टिमटिमाती इन तारों से
तुम अपना मन बहलाती क्यों
कहते है ये टूटते तारे
मुराद पूरी करता जाय
पर नामुराद मन को तेरी
टूटते हुए छलता जाए क्यों
मत देखो इन नक्षत्रों को
इसने सबको है भरमाया
गर देखना ही है देखो उसे
जो अटल अडिग वो है 'ध्रुवतारा'
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
जी लेने दो
कतरा-कतरा ज़िंदगी का
पी लेने दो
बूँद बूँद प्यार में
जी लेने दो
पी लेने दो
बूँद बूँद प्यार में
जी लेने दो
हल्का-हल्का नशा है
डूब जाने दो
रफ्ता-रफ्ता “मैं” में
रम जाने दो
डूब जाने दो
रफ्ता-रफ्ता “मैं” में
रम जाने दो
जलती हुई आग को
बुझ जाने दो
आंसूओं के सैलाब को
बह जाने दो
बुझ जाने दो
आंसूओं के सैलाब को
बह जाने दो
टूटे हुए सपने को
सिल लेने दो
रंज-ओ-गम के इस जहां में
बस लेने दो
सिल लेने दो
रंज-ओ-गम के इस जहां में
बस लेने दो
मकाँ बन न पाया फकीरी
कर लेने दो
इस जहां को ही अपना
कह लेने दो
कर लेने दो
इस जहां को ही अपना
कह लेने दो
तजुर्बा-इ-इश्क है खराब
समझ लेने दो
अपनी तो ज़िंदगी बस यूं ही
जी लेने दो
समझ लेने दो
अपनी तो ज़िंदगी बस यूं ही
जी लेने दो
सोमवार, 23 अगस्त 2010
कश्ती दरिया में
कश्ती दरिया में इतराए ये समझकर
दरिया तो अपनी है इठलाऊं इधर-उधर
किनारा तो है ही अपना ,ठहरने के लिए
दम ले लूंगा मै भटकूँ राह गर
पर उसे मालूम नही ये कमबख्त दरिया तो
किनारों को डुबो देता है सैलाब में
कश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
नादरिया अपनी न किनारा अपना
दरिया तो अपनी है इठलाऊं इधर-उधर
किनारा तो है ही अपना ,ठहरने के लिए
दम ले लूंगा मै भटकूँ राह गर
पर उसे मालूम नही ये कमबख्त दरिया तो
किनारों को डुबो देता है सैलाब में
कश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
नादरिया अपनी न किनारा अपना
e sakhi radhike1.m... |
शनिवार, 21 अगस्त 2010
नज़्म
(1)
चाँद खिला पर रौशनी नही आयी
रात बीती पर दिन न चढ़ा
अर्श से फर्श तक के सफ़र में
कमबख्त रौशनी तबाह हो गया
(2)
दिल की हालत कुछ यूं बयान हुई
कुछ इधर गिरा कुछ उधर गिरा
राह-ए-उल्फत का ये नजराना है जालिम
न वो तुझे मिला न वो मुझे मिला
चाँद खिला पर रौशनी नही आयी
रात बीती पर दिन न चढ़ा
अर्श से फर्श तक के सफ़र में
कमबख्त रौशनी तबाह हो गया
(2)
दिल की हालत कुछ यूं बयान हुई
कुछ इधर गिरा कुछ उधर गिरा
राह-ए-उल्फत का ये नजराना है जालिम
न वो तुझे मिला न वो मुझे मिला
hamne dekhi hai.mp... |
शुक्रवार, 20 अगस्त 2010
गुरुदेव द्वारा रचित कविता से अनुदित
कई बार सोचा मैंने अपने आपको भूलकर
तुम्हारे चरणों पर समर्पित करून अपने हृदय को खोलकर
मन ही मन सोचता हूँ दूर तुमसे मैं रहूँ
जीवन भर एकाकी रहकर मैं अदृश्य हो जाऊं
कोई समझे न ये मेरी गहरी प्रणय कथा
कोई जाने न ये मेरी अश्रु पूर्ण हृदय -व्यथा
आज कैसे मैं ये बातें सबके समक्ष कहूं
प्रेम कितना तुमसे है ये कैसे उजागर करूँ
कई बार सोचा मैंने अपने आपको भूलकर
तुम्हारे चरणों पर समर्पित करूँ अपने हृदय को खोलकर
श्री सुकुमार राय द्वारा रचित काव्य का काव्यानुवाद
कागज़ कलम लिए बैठा हूँ सद्य
आषाड़ में मुझे लिखना है बरखा का पद्य
क्या लिखूं क्या लिखूं समझ ना पाऊँ रे
हताश बैठा हूँ और देखूं बाहर रे
घनघटा सारादिन नभ में बादल दुरंत
गीली-गीली धरती चेहरा सबका चिंतित
नही है काम घर के अन्दर कट गया सारादिन
बच्चों के फुटबोल पर पानी पड़ गया रिमझिम
बाबुओं के चहरे पर नही है वो स्फूर्ति
कंधे पर छतरी हाथ में जूता किंकर्तव्य विमूढ़ मूर्ती
कही पर है घुटने तक पानी कही है घना कर्दम
फिसलने का डर है यहाँ लोग गिरे हरदम
मेढकों का महासभा आह्लाद से गदगद
रातभर गाना चले अतिशय बदखद
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
पूरक
सब एक दूजे के पूरक है उनमे न हो कोइ हिंसा
बुधवार, 18 अगस्त 2010
बधाई ...............बधाई ........बधाई ..........
अमृतान्जल
आसमान का रंग है नीला हरी-हरी सी धरती
मटमैला है रंग ज़मीं की पर रंग नहीं है जल की
हर रंग में यह ढल जाती है है यह बात गजब की
नष्ट न करो इस अमृत को संरक्षण कर लो जल की
पीकर घूँट अमृत की जन-जन धन्यवाद दो इश्वर को
बेकार न हो जाये जीवन पानी को सांस समझ लो
मटमैला है रंग ज़मीं की पर रंग नहीं है जल की
हर रंग में यह ढल जाती है है यह बात गजब की
नष्ट न करो इस अमृत को संरक्षण कर लो जल की
पीकर घूँट अमृत की जन-जन धन्यवाद दो इश्वर को
बेकार न हो जाये जीवन पानी को सांस समझ लो
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
इस पोस्ट को जरूर देखे ..........
Finger painting??? Wait Till You See This!
कविता रच डाली
आसमान में बादल छाया
छुप गया सूरज शीतल छाया
मेरे इस उद्वेलित मन ने
कविता रच डाली
कारी बदरी मन भरमाया
मन-मयूर ने पंख फैलाकर
कविता रच डाली
गीली मिटटी की खुश्बू से
श्यामल-श्यामल सी धरती से
मन के अन्दर गीत जागा और
कविता रच डाली
ये धरती ये कारी बदरी
मन को भरमाती ये नगरी
उद्वेलित कर गयी इस मन को और मैंने
कविता रच डाली
मन की बात
रे मन तेरी ये दुस्साहस जो तूने प्रेम रचा डाला,
तिल-तिल जलती इस मन को अब दे छांव प्यार की मिटे ज्वाला II
मन की माने या दुनिया की जो बार बार ये बतलाती है ,
की प्यार आग का दरिया है डूब के ही हमें पार जाना हैii
मन के कोने से आस जगी नहीं डरने की ये बात नहीं ,
प्यार ही तो है नफरत तो नहीं दुनिया की शाश्वत गाथा यही II
सोमवार, 16 अगस्त 2010
जीवन का सच
इस जीवन को जाना मैने
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा
जाने सभी पर माने ना
गीत का सन्देश प्यारा
व्यथा यही है मेरे मन की
न समझे लोग इशारों को
आओ व्यथा को दूर करें
और स्थान न दें बंटवारे को
रविवार, 15 अगस्त 2010
कुछ उपयोगी मंत्र.............
1.ॐ स्थविष्ठाय नमः to keep evil forces at bay
2. ॐ पुष्कराक्षाय नमः for overcoming bad times
3. ॐ भूतादये नमः chant this name to amend soured friendship or any personal relationship
4. ॐ धात्रे नमः for issue less couple
5.ॐ विधात्रे नमः pregnant ladies to chant for healthy babies
6. ॐ नारसिंह वपुषे नमः in moments of distress and despair
7.ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः for aspirants of plots and own residence
8.ॐ ऋषिकेशाय नमः for overcoming bad habits
9.ॐ वषटकराय नमः for sucess in business , interviews,visa interviews,building relationship
10. ॐ श्रीमते नमः please chant for handsome appearance and wealth.
11.ॐ अक्षराय नमः for education and better financial strenrh
12.ॐ परमात्मने नमः for self employed people ,for promotioms and success im games
13.ॐ भूतभावनाये नमः for better health
14. ॐ पूतात्मने नमः to remove mental stress and for mental peace
15.ॐ शर्मणे नमः for job satisfaction
16.कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहू सहस्रावान .
तस्य स्मरणमात्रेण गतं नष्टं च लभ्यते
please chant this slok to locate lost objects,persons and belongings
17. कामेश्वराय कामाय कामपालाय कामिने .
नमः कामविहाराय कामरूपधराय च
maarraigs get finalised by chanting this slok.Also this sloka bestows intimacy,mutual affwction and trust between couples.
भ्रमर कहे............
गुलाब का फूल खिला है इधर
मधु मत जाओ रे
फूलों से शहद लेते हुए कहीं
तुम काँटों से आहत न हो रे
इधर है बेला उधर है चम्पा
विविध फूल है सर्वत्र
व्यथा कथा अपने मन की
कह दो ये यहाँ है एकत्र
भ्रमर कहे मै ये जानूं
इधर बेला है उधर नलिनी
पर मैं न जाऊं इधर - उधर
ये नहीं है मेरी संगिनी
मैं तो अपनी व्यथा-कथा
बांचुंगा गुलाब के संग
गर मैं आहत होऊं तो क्या
सह लूंगा मै काँटों का दंश
गुरुदेव की रचना से प्रेरित
You might also like:
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
iframe>
Comments
BidVertiser
ब्लॉग आर्काइव
-
▼
2010
(33)
-
▼
अगस्त
(16)
- 'ध्रुवतारा'
- जी लेने दो
- कश्ती दरिया में
- नज़्म
- गुरुदेव द्वारा रचित कविता से अनुदित
- श्री सुकुमार राय द्वारा रचित काव्य का काव्यानुवाद
- पूरक
- बधाई ...............बधाई ........बधाई ..........
- अमृतान्जल
- इस पोस्ट को जरूर देखे ..........
- कविता रच डाली
- मन की बात
- जीवन का सच
- कुछ उपयोगी मंत्र.............
- भ्रमर कहे............
- .वन्दे मातरम
-
▼
अगस्त
(16)