गुलाब का फूल खिला है इधर
मधु मत जाओ रे
फूलों से शहद लेते हुए कहीं
तुम काँटों से आहत न हो रे
इधर है बेला उधर है चम्पा
विविध फूल है सर्वत्र
व्यथा कथा अपने मन की
कह दो ये यहाँ है एकत्र
भ्रमर कहे मै ये जानूं
इधर बेला है उधर नलिनी
पर मैं न जाऊं इधर - उधर
ये नहीं है मेरी संगिनी
मैं तो अपनी व्यथा-कथा
बांचुंगा गुलाब के संग
गर मैं आहत होऊं तो क्या
सह लूंगा मै काँटों का दंश
गुरुदेव की रचना से प्रेरित
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