आयोजकों के खेल ने खेल बिगाड़ा है
दिल्ली बारिश से नहीं शर्म से पानी पानी है
किसी ने सच कहा है
साफ़ पानी के नीचे देखो तो
कचरा दिखता है
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sig
SWAMI VIVEKANAND SAID:
"TALK TO YOURSELF ATLEAST ONCE IN A DAY
OTHERWISE
YOU MAY MISS A MEETING WITH AN EXCELLENT PERSON IN THIS WORLD".........
बुधवार, 22 सितंबर 2010
शुक्रवार, 17 सितंबर 2010
मर जाउंगी सूख-सूख कर ( गुरुदेव की रचना से प्रेरित,)
हृदय मेरा कोमल अति सहा न पाए भानु ज्योति
प्रकाश यदि स्पर्श करे मरे हाय शर्म से
भ्रमर भी यदि पास आये भयातुर आँखे बंद हो जाए
भूमिसात हम हो जाए व्याकुल हुए शर्म से
कोमल तन को पवन जो छुए तन से फिर पपड़ी सा निकले
पत्तों के बीच तन को ढककर खड़े है छुप – छुप के
अँधेरा इस वन में ये रूप की हंसी उडेलूंगी मै सुरभि राशि
इस अँधेरे वन के अंक में मर जाउंगी सूख-सूख कर
प्रकाश यदि स्पर्श करे मरे हाय शर्म से
भ्रमर भी यदि पास आये भयातुर आँखे बंद हो जाए
भूमिसात हम हो जाए व्याकुल हुए शर्म से
कोमल तन को पवन जो छुए तन से फिर पपड़ी सा निकले
पत्तों के बीच तन को ढककर खड़े है छुप – छुप के
अँधेरा इस वन में ये रूप की हंसी उडेलूंगी मै सुरभि राशि
इस अँधेरे वन के अंक में मर जाउंगी सूख-सूख कर
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
आज हिंदी दिवस है . सभी हिंदी चिट्ठाकारों को मेरी ओर से हार्दिक बधाइयां
आज हिंदी दिवस है . सभी हिंदी चिट्ठाकारों को मेरी ओर से हार्दिक बधाइयां .इस अवसर पर प्रस्तुत है एक कविता
निजु भाषा उन्नति अह़े सब उन्नति के मूल
बिनु निजु भाषा ज्ञान के मिटे न हिय के शूल
--- "भारतेंदु हरिश्चंद "----
अब प्रस्तुत है मेरी लिखी एक कविता :
तेरी अधरों की मुस्कान
देखने को हम तरस गए
घटाए भी उमड़-घुमड़ कर
यहाँ वहाँ बरस गए
पर तेरी वो मुस्कान
जो होंठों पर कभी कायम था
पता नहीं क्यों किस जहां में
जाकर सिमट गए
तेरी दिल की पुकार
सुनना ही मेरी चाहत है
प्यार की कशिश को पहचानो
ये दिल तुझसे आहत है
मुस्कुराना गुनाह तो नहीं
ज़रिया है जाहिर करने का
होंठो से न सही इन आँखों से
बता दो जो दिल की छटपटाहट है
सोमवार, 13 सितंबर 2010
जाह्नवी हूँ
मै नदी हूँ .............
पहाड़ो से निकली
नदों से मिलती
कठिन धरातल पर
उफनती उछलती
प्रवाह तरंगिनी हूँ

परवाह किसे है
ले चलती किसे मै
रेट हो या मिटटी
न छोडूँ उसे मै
तरल प्रवाहिनी हूँ

राह बनाती
सागर जा मिलती
पर्वत से अमृत को
लेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
मेरी चाहत

पेड़ के पीछे से
झरनों के नीचे से
नदियों के किनारे से
बागियों के दामन से
पहाड़ों की ऊँचाई से
नाम तेरा पुकारूं
झरनों के नीचे से
नदियों के किनारे से
बागियों के दामन से
पहाड़ों की ऊँचाई से
नाम तेरा पुकारूं
पेड़ो से टकराकर
झरनों से लिपटकर
नदियों से बलखाकर
बागियों को महकाकर
पहाडो की वादियों से
नाम तेरा गूंजे
तुझे कई बार सुनाई दे
झरनों से लिपटकर
नदियों से बलखाकर
बागियों को महकाकर
पहाडो की वादियों से
नाम तेरा गूंजे
तुझे कई बार सुनाई दे
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
पुकार
अब के बरस फिर न जाओ सजनवा बिदेस
सावन जो आयो मै हो जाऊँगी रे उदास
ये बरखा के रिमझिम ये साँसे ये धड़कन कहे
न जाओ सजन छोड़ो अब न करो धन की आस
मेरे मन का आँगन पड़ी रह जावेगी सून
न जइयो न जइयो पुकारूँ तुझे बार बार
रुक जइयो सुनकर ये कारुणिक मेरी है पुकार
बुधवार, 8 सितंबर 2010
अनुमति दो माँ ..........
चरण-स्पर्श का अनुमति दो माँ
चरणों से दूर मुझे मत करो

इस अधिकार को मत हरो
ऐसा क्या अनर्थ हुआ है मुझसे
कि आपने मूंह फेर लिया
नौ महीने मुझे गर्भा में स्थान दिया
पर दुनिया में लाकर त्याग दिया
माना कि गलती थी मेरी
आपका सुध मैंने नही लिया
पर माँ कि ममता नही होता क्षण-भंगुर
कभी त्याग दिया कभी समेट लिया
माना मै हूँ स्वार्थ का मारा
माँ की ममता न पहचान पाया
पर आप ने भी तो अधिकार न जताया
मुझे पराया घोषित कर दिया
अब मेरी बस इतनी इच्छा है
आप की गोद में मैं वापस आऊँ
अपने संतान से जब आहत हुआ ये मन
लगा माँ की गोद में ही सिमट जाऊं
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010
रात का सूनापन
रात का सूनापन
मेरी जिन्दगी को सताए
दिन का उजाला भी
मेरे मन को भरमाये
क्यों इस जिन्दगी में
सूनापन पसर गया
खिलखिलाती ये जिन्दगी
गम में बदल गया
आना मेरी जिन्दगी में तेरा
एक नया सुबह था
वो रात भी नयी थी
वो वक्त खुशगवार था
वो हाथ पकड़ कर चलना
खिली चांदनी रात में
सुबह का रहता था इंतज़ार
मिलने की आस में
पर जाने वो हसीं पल
मुझसे क्यों छिन गया
जो थे इतने पास-पास
वो अजनबी सा बन गया
मेरे अनुरागी मन को
बैरागी बना दिया
रोग प्रेम का है ही ऐसा
कभी दिल बहल गया
कभी दिल दहल गया
गुरुवार, 2 सितंबर 2010
जन्माष्टमी की शुभकामनाये ..........
सदा सर्वात्मभावेन भजनीयो व्रजेश्वर:
करिष्यति स एवास्मदैहिकं पारलौकिकम (1)
अन्याश्रयो न कर्त्तव्य: सर्वथा बाधकस्तु स:
स्वकीये स्वात्मभावश्च कर्त्तव्य: सर्वथा सदा (2)
सबके आत्मा रूप से व्याप्त भगवान श्री कृष्ण का ही सदैव भजन करना चाहिए , वो ही हमलोगों के लौकिक पारलौकिक लाभ सिद्ध करंगे (1) दूसरे का आश्रय नही लेना चाहिए क्योंकि वह सर्वदा बाधक होता है;सदा स्वावलंबी होकर आत्मभाव का पालन करना चाहिए (2}
बुधवार, 1 सितंबर 2010
मै और मेरी तन्हाई
इस सूने कमरे में है बस
मै और मेरी तन्हाई
दीवारों का रंग पड गया फीका
थक गयी आँखे पर वो न आयी
छवि जो उसकी दिल में समाया
दीवारों पर टांग दिया
तू नही पर तेरी छवि से ही
टूटे मन को बहला लिया
पर क्या करूँ इस अकेलेपन का
बूँद-बूँद मन को रिसता है
उस मन को भी न तज पाऊँ मै
जिस मन में वो छब बसता है
शायद वो आ जाए एक दिन
एकाकी घर संवर जाए
इस निस्संग एकाकीपन को
साथ कभी तेरा मिल जाए
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