चरण-स्पर्श का अनुमति दो माँ
चरणों से दूर मुझे मत करो
ये अधिकार मुझे जन्म से ही मिला है
इस अधिकार को मत हरो
ऐसा क्या अनर्थ हुआ है मुझसे
कि आपने मूंह फेर लिया
नौ महीने मुझे गर्भा में स्थान दिया
पर दुनिया में लाकर त्याग दिया
माना कि गलती थी मेरी
आपका सुध मैंने नही लिया
पर माँ कि ममता नही होता क्षण-भंगुर
कभी त्याग दिया कभी समेट लिया
माना मै हूँ स्वार्थ का मारा
माँ की ममता न पहचान पाया
पर आप ने भी तो अधिकार न जताया
मुझे पराया घोषित कर दिया
अब मेरी बस इतनी इच्छा है
आप की गोद में मैं वापस आऊँ
अपने संतान से जब आहत हुआ ये मन
लगा माँ की गोद में ही सिमट जाऊं
very expressive
जवाब देंहटाएंअंतर्मन के सच्चे उदगार
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत ही सुन्दर लिखा है | धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंअपने संतान से जब आहत हुआ ये मन
जवाब देंहटाएंलगा माँ की गोद में ही सिमट जाऊं
भाव सुंदर...कुछ खामियां हैं....ध्यान दीजिएगा
बहुत खूब........शानदार अभिव्यक्ति लिए है ये कविता ...........भावों को सुन्दर ढंग से पिरोया है आपने ........शुभकामनाये |
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
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