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शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मर जाउंगी सूख-सूख कर ( गुरुदेव की रचना से प्रेरित,)

हृदय मेरा कोमल अति सहा न पाए भानु ज्योति
प्रकाश यदि स्पर्श करे मरे हाय शर्म से
भ्रमर भी यदि पास आये भयातुर आँखे बंद हो जाए
भूमिसात हम हो जाए व्याकुल हुए शर्म से
कोमल तन को पवन जो छुए तन से फिर पपड़ी सा निकले
पत्तों के बीच तन को ढककर खड़े है छुप – छुप के
अँधेरा इस वन में ये रूप की हंसी उडेलूंगी मै  सुरभि राशि 
इस अँधेरे वन के अंक में मर जाउंगी सूख-सूख कर

5 टिप्‍पणियां:

  1. इस अँधेरे वन के अंक में मर जाउंगी सूख-सूख कर ...vaah sundar kaavyadristi.

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