हृदय मेरा कोमल अति सहा न पाए भानु ज्योति
प्रकाश यदि स्पर्श करे मरे हाय शर्म से
भ्रमर भी यदि पास आये भयातुर आँखे बंद हो जाए
भूमिसात हम हो जाए व्याकुल हुए शर्म से
कोमल तन को पवन जो छुए तन से फिर पपड़ी सा निकले
पत्तों के बीच तन को ढककर खड़े है छुप – छुप के
अँधेरा इस वन में ये रूप की हंसी उडेलूंगी मै सुरभि राशि
इस अँधेरे वन के अंक में मर जाउंगी सूख-सूख कर
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SWAMI VIVEKANAND SAID:
"TALK TO YOURSELF ATLEAST ONCE IN A DAY
OTHERWISE
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंbadhia hai
जवाब देंहटाएंइस अँधेरे वन के अंक में मर जाउंगी सूख-सूख कर ...vaah sundar kaavyadristi.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार-महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें