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गुरुवार, 9 सितंबर 2010
पुकार
अब के बरस फिर न जाओ सजनवा बिदेस
सावन जो आयो मै हो जाऊँगी रे उदास
ये बरखा के रिमझिम ये साँसे ये धड़कन कहे
न जाओ सजन छोड़ो अब न करो धन की आस
उन पैसों का क्या काम जो ले जावे है मुझसे दूर
मेरे मन का आँगन पड़ी रह जावेगी सून
न जइयो न जइयो पुकारूँ तुझे बार बार
रुक जइयो सुनकर ये कारुणिक मेरी है पुकार
2 टिप्पणियां:
संगीता स्वरुप ( गीत )
9 सितंबर 2010 को 10:24 pm बजे
मन से निकली पुकार ...अच्छी अभिव्यक्ति
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Shah Nawaz
10 सितंबर 2010 को 7:57 am बजे
बहुत ही बेहतरीन कविता है..... बहुत खूब!
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मन से निकली पुकार ...अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन कविता है..... बहुत खूब!
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