मै नदी हूँ .............
पहाड़ो से निकली
नदों से मिलती
कठिन धरातल पर
उफनती उछलती
प्रवाह तरंगिनी हूँ
परवाह किसे है
ले चलती किसे मै
रेट हो या मिटटी
न छोडूँ उसे मै
तरल प्रवाहिनी हूँ
राह बनाती
सागर जा मिलती
पर्वत से अमृत को
लेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।
एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें
बहुत ही बेहतरीन रचना!............. बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंवाह ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...मन भी नदी के समान ही निरंतर बहता है ...
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें