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SWAMI VIVEKANAND SAID:



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सोमवार, 13 सितंबर 2010

जाह्नवी हूँ

   मै नदी हूँ .............
पहाड़ो से निकली 
नदों से मिलती 
कठिन धरातल पर              
उफनती उछलती 
प्रवाह तरंगिनी हूँ 
                                    

परवाह किसे है 
ले चलती किसे मै 
रेट हो या  मिटटी   
न छोडूँ उसे मै 
तरल प्रवाहिनी हूँ 
                               
राह बनाती 
सागर जा मिलती 
 पर्वत से अमृत को 
लेकर मै चलती 
न आदि न अंत 
शिव जटा से प्रवाहित           
जाह्नवी हूँ 
                                        

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।

    एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही बेहतरीन रचना!............. बहुत खूब!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...मन भी नदी के समान ही निरंतर बहता है ...

    जवाब देंहटाएं

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