आज हिंदी दिवस है . सभी हिंदी चिट्ठाकारों को मेरी ओर से हार्दिक बधाइयां .इस अवसर पर प्रस्तुत है एक कविता
निजु भाषा उन्नति अह़े सब उन्नति के मूल
बिनु निजु भाषा ज्ञान के मिटे न हिय के शूल
--- "भारतेंदु हरिश्चंद "----
अब प्रस्तुत है मेरी लिखी एक कविता :
तेरी अधरों की मुस्कान
देखने को हम तरस गए
घटाए भी उमड़-घुमड़ कर
यहाँ वहाँ बरस गए
पर तेरी वो मुस्कान
जो होंठों पर कभी कायम था
पता नहीं क्यों किस जहां में
जाकर सिमट गए
तेरी दिल की पुकार
सुनना ही मेरी चाहत है
प्यार की कशिश को पहचानो
ये दिल तुझसे आहत है
मुस्कुराना गुनाह तो नहीं
ज़रिया है जाहिर करने का
होंठो से न सही इन आँखों से
बता दो जो दिल की छटपटाहट है
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
हरीश प्रकाश गुप्त की लघुकथा प्रतिबिम्ब, “मनोज” पर, पढिए!
मुस्कुराना गुनाह तो नहीं
जवाब देंहटाएंज़रिया है जाहिर करने का
होंठो से न सही इन आँखों से
बता दो जो दिल की छटपटाहट है...bahut sundar.hindi divas ki subhakaamanaaye.
तेरी अधरों की मुस्कान
जवाब देंहटाएंदेखने को हम तरस गए
घटाए भी उमड़-घुमड़ कर
यहाँ वहाँ बरस गए
.....बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाये....